हरे कृष्ण
हिन्दू धर्म में कुम्भ की अपनी महिमा है
कुम्भ एक पर्व ही नहीं अपतु एक दिव्य संयोग है जो १२ वर्ष के उपरांत बृहस्पति की एक गति के अधीन प्रगट होता है
जब श्री गुरु देव सूर्य राशी सिंह के भ्रमण काल में होते होते है तब यह दिव्य पर्व बनाया जाता है जो सिंहस्थ_कुंभ के नाम से जाना जाता है
यदपि यह गुरु का भ्रमण काल करीब १२ माह का होता है पर बैसाख माह में सूर्य के उच्च होने पर यह पर्व सिंहस्थ_कुंभ_उज्जैन, में बनाया जाता है, जिसकी अपनी महिमा है
यह पर्व आत्मशुद्धि व् आत्मकल्याण को सुनिश्चित करता है
प्राचीन काल से मोक्ष की कामना व् लोक कल्याण हेतु विविद नदियों के तट पर सुनिश्चित तरीके से उपासना कर जीव अपना कल्याण सुनिश्चित करते थे
समय सारिणी के भेद अनुसार पर्व पर आत्म शुद्धि व् समर्पण से मानव अपनी जीवन की यात्रा को सुखद रूप देता था
यह सिंहस्थ_कुंभ_उज्जैन, उसी कड़ी का एक सूत्र है जहां देव गुरु की कृपा का सार ही इस कुम्भ की महिमा का स्वरुप है,
सूर्य मेष राशिगत बलिष्ट हो भक्तो का कल्याण सुनिश्चित करता है उसी समय देव गुरु सिंहस्थ हो जीव को मुक्ति हेतु परम ज्ञान प्रदान करते है यही इस कुम्भ का सार है,
मोक्ष दायिनी शिप्रा नदी अपना परिपूर्ण सहयोग प्रदान करती है
सच्चे साधु संतो का मिलन आत्मा को प्रभुमय कर देते है
सत्संग से जीव अपने मूल तत्व का सामीप्य प्राप्य करता है
और इन सब युक्तियों से स्वयं ही जीव आत्मशुद्धि को प्राप्त कर कल्याण का पात्र हो जाता है
परमात्मा की सभी पर कृपा हो
धन्यवाद
हरे रामा
हिन्दू धर्म में कुम्भ की अपनी महिमा है
कुम्भ एक पर्व ही नहीं अपतु एक दिव्य संयोग है जो १२ वर्ष के उपरांत बृहस्पति की एक गति के अधीन प्रगट होता है
जब श्री गुरु देव सूर्य राशी सिंह के भ्रमण काल में होते होते है तब यह दिव्य पर्व बनाया जाता है जो सिंहस्थ_कुंभ के नाम से जाना जाता है
यदपि यह गुरु का भ्रमण काल करीब १२ माह का होता है पर बैसाख माह में सूर्य के उच्च होने पर यह पर्व सिंहस्थ_कुंभ_उज्जैन, में बनाया जाता है, जिसकी अपनी महिमा है
यह पर्व आत्मशुद्धि व् आत्मकल्याण को सुनिश्चित करता है
प्राचीन काल से मोक्ष की कामना व् लोक कल्याण हेतु विविद नदियों के तट पर सुनिश्चित तरीके से उपासना कर जीव अपना कल्याण सुनिश्चित करते थे
समय सारिणी के भेद अनुसार पर्व पर आत्म शुद्धि व् समर्पण से मानव अपनी जीवन की यात्रा को सुखद रूप देता था
यह सिंहस्थ_कुंभ_उज्जैन, उसी कड़ी का एक सूत्र है जहां देव गुरु की कृपा का सार ही इस कुम्भ की महिमा का स्वरुप है,
सूर्य मेष राशिगत बलिष्ट हो भक्तो का कल्याण सुनिश्चित करता है उसी समय देव गुरु सिंहस्थ हो जीव को मुक्ति हेतु परम ज्ञान प्रदान करते है यही इस कुम्भ का सार है,
मोक्ष दायिनी शिप्रा नदी अपना परिपूर्ण सहयोग प्रदान करती है
सच्चे साधु संतो का मिलन आत्मा को प्रभुमय कर देते है
सत्संग से जीव अपने मूल तत्व का सामीप्य प्राप्य करता है
और इन सब युक्तियों से स्वयं ही जीव आत्मशुद्धि को प्राप्त कर कल्याण का पात्र हो जाता है
परमात्मा की सभी पर कृपा हो
धन्यवाद
हरे रामा
