हरे रामा
जनमु सिंधु पुनि बंधु बिषु
दिन मलीन सकलंक
सिय मुख समता पाव किमि
चंदु बापुरो रंक
घटइ बढ़इ बिरहनि दुखदाई
ग्रसइ राहु निज संधिहिं पाई
कोक सोकप्रद पंकज द्रोही
अवगुन बहुत चंद्रमा तोही
बैदेही मुख पटतर दीन्हे
होइ दोष बड़ अनुचित कीन्हे
सिय मुख छबि बिधु ब्याज बखानी
गुरु पहिं चले निसा बड़ि जानी
जय श्री राम
जनमु सिंधु पुनि बंधु बिषु
दिन मलीन सकलंक
सिय मुख समता पाव किमि
चंदु बापुरो रंक
घटइ बढ़इ बिरहनि दुखदाई
ग्रसइ राहु निज संधिहिं पाई
कोक सोकप्रद पंकज द्रोही
अवगुन बहुत चंद्रमा तोही
बैदेही मुख पटतर दीन्हे
होइ दोष बड़ अनुचित कीन्हे
सिय मुख छबि बिधु ब्याज बखानी
गुरु पहिं चले निसा बड़ि जानी
जय श्री राम